Feb 23, 2011

ख्वायिश

समय  को बाँधना था ,
लेकिन  गुज़र गया .
बारिश  को  समेटना था,
बरस गया वोः मुजको बिगोके.
एक बार केलिए अगर ,
थम  जाए ये वक़्त मेरे लिए ...
तो  समेटलूं  वोः सारी यादें ,
जो मुझसे छूट गये.

1 comment:

പദസ്വനം said...

कितना अच्छा "ख्वायिश" है |
पर ये हो नहीं सकता...
लिखो खूब जी भर के :)